"साउथ एशियन हिस्ट्री" के जालस्थल : http://india_resource.tripod.com/Hindi-Essays.html शिशिर थडानी, संपादक, साउथ एशियन हिस्ट्री, बी ४४, डिफेंस कालोनी, नई दिल्ली ११००२४, ईमेलः kalakriti@mindspring.com से साभार लेकर कृतिदेव_१० ==> यूनिकोड परिवर्तक द्वारा फॉण्ट बदलकर संकलित।

गदर आंदोलन के महत्वपूर्ण दस्तावेज

/संस्थापनः 1913/

गदर पार्टी का पहला घोषणा पत्र या राजनैतिक मंच

1.भारत को ब्रिटिश गुलामी से सशस्त्राशक्ति द्वारा स्वतंत्रा करना और सभी के लिए समान अधिकारों के साथ स्वाधीन और स्वतंत्रा भारत की स्थापना करना।
2.सेनफ्रांसिसको में उसका प्रधानआवास स्थापित करना जो इन उद्देश्यों और मंजिलों के पाने के समस्त कार्यकलापों के संयोजन का आधार हो।
3.भारत की दूसरी भाषाओं के साथ उर्दू, हिंदी और पंजाबी में गदर साप्ताहिक समाचार पत्रा प्रकाशित करना।
4.विभिन्न समितियों में से एक संयोजक समिति जो सभी कार्यों का संचालन करेगी के गठन के लिए प्रति वर्ष सांगठनिक चुनाव करवाना।
5.भारतीय रेलवे, औद्योगिक और कृषि कामगारों तथा विद्यार्थियों में कक्ष बनाना जो केंद्र से सीधे जुड़े रहें।
6.संयोजक समिति एक तीन सदस्यीय आयोग का चुनाव करेगी जो राजनैतिक और भूमिगत कामों की देखरेख करेगा।
7.प्रत्येक सदस्य से एक डालर प्रति माह द्वारा आय होगी।
8.संगठन के भीतर धर्म पर वादविवाद या विवेचन नहीं होगा। धर्म को व्यक्तिगत विषय माना गया और संगठन के भीतर उसके लिए कोई जगह नहीं।
9.हर सदस्य का जिस देश में वह रहता हो, वहां के स्वतंत्राता संग्राम में भाग लेना, उसका कर्तव्य है।

बड़े पैमाने पर बांटा जाने वाला इस्तहार ’’जंग का होका’’ /युद्ध की घोषणा/

भारत की जनता के नाम खुला पत्र

प्रिय मित्रो,

हमें आपको याद दिलाने की आवश्यकता नहीं है; आप सब जानते हैं, हमने ब्रिटिश शासन के नीचे कितना सहा है। हम सब इस विदेशी तानाशाह से छुटकारा पाने की इच्छा रखते हैं जो हमारे खून को सफेद होने तक बहाता चला आ रहा है। समय आ रहा है जब हमारे संयुक्त प्रयास इस आक्रांता के जुये को उतार फंेकेगा।

एक विश्व युद्ध आ रहा है। हमें इस अवसर का फायदा उठाना चाहिए। आने वाले युद्ध में भाग लेने के लिए इंग्लेण्ड कटिबद्ध है। राजनैतिक विवेक की मांग है कि इस अवसर का हम अपने अच्छे के लिए उपयोग कर लें। हमें संपूर्ण स्वतंत्राता की मांग करना चाहिए खासकर जब हमारा शत्राु, ब्रिटिश साम्राज्यशाही, जिंदगी और मौत की लड़ाई में लगा हो।

अपने जीवन को बचाने में ब्रिटिश को अन्य किसी वस्तु की अपेक्षा भारत की दोस्ती की आवश्यकता होगी। अपनी दोस्ती की कीमत हमें संपूर्ण स्वतंत्राता की मांग करके वसूलना चाहिए।
हमें ब्रिटिश शासकों को साफ तौर पर बतला देना चाहिए कि यदि वे भारत की दोस्ती की चिंता करते हैं तो उन्हें भारत को एकदम पूरी स्वतंत्राता देने के लिए तैयार होना चाहिए। अन्यथा, भारत से किसी भी प्रकार की मदद लेने के उनके प्रयत्न का भारत विरोध करेगा। यह अलग बात है कि विरोध कैसा होगा, परंतु हम विरोध करेंगे।

संपूर्ण स्वतंत्राता के मायने हैं कि राजकोष, विदेशी संबंधों और सैनिक शक्तियों पर भारत का नियंत्राण। उसमें से कुछ भी कम नहीं।

हमें याद रखना चाहिए कि हम ब्रिटिश साम्राज्यवादियों के किसी भी आश्वासन पर विश्वास नहीं कर सकते। अपने दुखों के लिए हमने अनेक बार में जान लिया है कि हम उनके शब्दों पर विश्वास नहीं कर सकते। हमें अपनी मांगों पर दृढ़ रहना है। हमें हर तरीके से एक दूसरे से जुड़ जाना है जब तक कि हमारी मांगें हमंेे प्राप्त न हो जायें।

दुनिया की स्थिति ऐसी है कि भारत की मांग को ठुकराने के पूर्व ब्रिटिश को दो बार सोचना होगा। हमें इस सोने जैसे अवसर को खोना नहीं है।

स्थिति से पूरा लाभ पाने के लिए हमें एक शक्तिशाली संयुक्त मोर्चा बनाना चाहिए। उन सभी हिंदुस्तानियों को जो सचमुच में स्वतंत्राता के लिए काम कर रहे हैं, एक साथ मिलकार एक संयुक्त मोर्चे में होना चाहिए। व्यक्तिगत विभेदों को भुलाया जाना चाहिए। हमारे लक्ष्य के लिए उद्देश्य की एकता आवश्यक है। जो भारत की स्वतंत्राता को प्यार करते हैं उन सबको एक दुर्जेय संयुक्त मोर्चे की स्थापना करना चाहिए। संयुक्त मोर्चे से समर्थित हमारी मांगें निर्णयकारी प्रभाव रखेंगीं।

मांगों को अपने देशवासियों में प्रचारित करना चाहिए। यदि हमारी मांगें पूरी नहीं हुईं तो जनता को संघर्ष के लिए तैयार करना चाहिए।

अब अपने लोगों को शिक्षित करने का समय आ गया है, कल तो बहुत विलंबकारी होगा। युद्ध के दौरान सैन्य कानून चीजों को कठिन बना देगा। जब तक आम जनता काम के लिए तैयार नहीं हो जाती हमारी मांगों को वजन नहीं मिलेगा। ब्रिटिश साम्राज्यवाद खाली प्रस्तावों पर थोड़े ही ध्यान देगा जब तक उन प्रस्तावों के पीछे आम जनता की संयुक्त शक्ति नहीं होगी।

युद्ध किसी भी दिन शुरू हो सकता है। हमारे पास एक भी क्षण खोने के लिए नहीं है। हमें भारतीय जनता को शिक्षित एवं संगठित करने में सबसे अधिक प्रयास करना चाहिए जबकि हमारे पास अभी समय है। हमारा नारा होना चाहिए किः

संपूर्ण स्वतंत्राता अथवा असहयोग ! स्वतंत्राता अथवा कुछ भी नहीं ! स्वतंत्राता नहीं, भारत से सैनिक नहीं ! स्वतंत्राता नहीं, भारत से धन नहीं ! स्वतंत्राता या प्रतिरोध !

गदर सेना के लिए आह्वान

ब्रिटिश ने हमारी भूमि पर कब्जा कर लिया है। हमारा व्यापार और उद्योग नष्ट कर दिए हैं। उनने हिंदुस्तान की संपदा पर डाका डाला और लूटा और दुर्भिक्ष एवं प्लेग ले आये। 90 मीलियन लोगों को दिन में एक बार भर पेट भोजन प्राप्त नहीं होता। 30 मीलियन लोग दुर्भिक्ष और प्लेग से मारे गए। वे हमारे सभी उत्पाद और अनाज इंग्लेण्ड भेज रहे हैं। इन कष्टमय परिस्थितियों के कारण हिंदुस्तानी दूर के देशों में जाने लगे हैं जैसे आस्ट्र्ेलिया, कनाडा, अमेरिका, और अफ्रीका; और जब वहां उन्होंने अपना पेट भरना शुरू किया तो ब्रिटिश के हृदय में सुइयां चुभने लगीं। क्योंकि इसने हिंदुस्तानियों की आंखें खोल दीं हैं और वे ब्रिटिश की योजनाओं को समझने लगे हैं। ब्रिटिश हमें भारत में रोके रखना चाहते हैं और जब हम विदेश जा पहुंचते हैं वे हमारी दशा दयनीय बना देते हैं। उन्होंने आस्ट्र्ेलिया और कनाडा को हमारे लिए बंद कर रखा है। वे अफ्रीका में तो हमारी मां, बहन और बच्चों से पशुओं की तरह व्यवहार करते हैं।

अब ब्रिटिश अमेरिकन सरकार पर दबाव डाल रही है और हमें अमेरिका के किनारे आने से रोक रही है। अमेरिकन सरकार कह चुकी है कि यदि ब्रिटिश सरकार हिंदू को अपने शासित देशों, आस्ट्रे्लिया और कनाडा जाने से रोक रही है तो हम क्यों उनको अपने यहां आने दें। यह प्रस्ताव उनकी संसद में है। यदि यह प्रस्ताव पारित हो गया तो हम नष्ट हो जावंेगे। दूसरे देश भी ऐसे कानून बनायेंगे। अब समय है इस स्थिति के बारे में कुछ करने का।

बहादुर हिंदू अपनी नींद से उठो ! ब्रिटिश हमें हर जगह से निकाल रहा है। हमें एक होना चाहिए और लड़ना चाहिए जिससे ऐसे कानून पारित न हो सकें। हमें क्या करना चाहिए ? हमारा इस समय क्या कर्तव्य है ? इस समय हमारा कर्तव्य है कि भारत में ब्रिटिश शासन जो हमारी सभी समस्याओं की जड़ है, के खिलाफ लड़ने के लिए एक सेना तैयार करना है। यह समय बात करने का नहीं है। यह समय युद्ध का है। कितने लम्बे समय तक तुम प्रतीक्षा करते रहोगे ? दुनिया कितने लम्बे समय तक तुम्हें दास पुकारती रहेगी ? रविवार फरवरी 15 को स्टाकहोम में एक विशाल सभा होने वाली है। अमेरिका के सभी हिंदू और मुसलमान आने के लिए निवेदित हैं। दमनकारों के लिए और अधिक प्रार्थना पत्रा नहीं हैं। अब हमें अपने अधिकार तलवार से लेना हांेगे।

भारत में गदर के लिए एक सेना की भरती की जायेगी।

आओ भाइयों तुमने बहुत डालर कमा लिये ! जहाज को वापिस अपने देश ले चलें ! आओ हम अपनी मातृभूमि को लौट चलें और विद्रोह का परचम उठायंे। स्टाकहोम की सभा में आईए और हिंदुस्तान वापिस जाने और गदर में लड़ने की कसम खाईए। जैसा कि यह नारा खून से लिखा है उसी तरीके से हिंदुस्तान की भूमि पर स्वतंत्राता का पत्रा हमारे और ब्रिटिश के खून से लिखा जायेगा। इस प्रतिज्ञा के लिए युगांतर आश्रम से यह नारा दिया जा रहा है। यह कागज नहीं है, बल्कि युद्ध की घोषणा है। सब कुछ रोक दो और आओ ! देर मत करो !

केवल वही वीर लड़ाकू है जो अपने देश केे लिए लड़ता है। यहां तक कि उसे टुकड़ों में काट दिया जाता है पर वह लड़़ाई का मैदान नहीं छोड़ता।

गदर पार्टी ने अपने साहित्य में ब्रिटिश शासन के अनेक वीभत्स विवरण प्रकाशित किए और प्रायः वे अपने आपको स्वतंत्राता का सिपाही कहते थे।

1.अंग्रेज प्रति वर्ष 50 करोड़ रुपया /167 मीलियन/ हमसे निचोड़ते और इंग्लेण्ड ले जाते; फलस्वरूप हिंदू इतने गरीब बन गए कि प्रतिदिन की औसत आय प्रति व्यक्ति 5 पैसे /2.5 सेंट/ है।
2.भूमि का कर शुद्ध उत्पादन का 65 प्रतिशत से अधिक है।
3.250 मीलियन आदमियों की शिक्षा पर लगभग 0.02 प्रतिशत प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष है। उदाहरण स्वरूपः
लगभग 40,000,000 पौंड
साफ सफाई पर 6,000,000 पौंड
परंतु सेना पर 330,000,000 पौंड
4.ब्रिटिश शासन में दुर्भिक्ष बढ़े हैं और पिछले 10 वर्षों में 20 मीलियन पुरुष, स्त्रिायां और बच्चे भूख से मरे हैं।
5.प्लेग से पिछले 15 वर्षों में 8 मीलियन लोगों की मृत्यु हुई है।
6.देश के राज्यों में विभाजन एवं अवज्ञा फैलाने के लिए साधनों का उपयोग किया जाता है और ब्रिटिश प्रभाव को बढ़ाया जाता है।
7.हिंदू की हत्या या हिंदू महिला के अपमान के लिए अंग्रेजों को सजा नहीं दी जाती।
8.हिंदू से लिया गया धन अंग्रेज ईसाई पादरियों को दिया जाता है।
9.विभिन्न धर्मावलंबियों के बीच शत्राुता के बीज बोये जाते हैं।
10.इंग्लेण्ड के लाभ के लिए भारत की कला और दस्तकारी /उद्योग/ को नष्ट किया जाता है।
11.भारत की संपदा के निवेश और हिंदू सैनिकों के जीवन के बलिदान से चीन, अफगानिस्तान, बर्मा, ईजिप्ट और परशिया को जीता गया।
12.सबसे शक्तिशाली डालर के लिए ब्रिटिश सरकार ने भारत में अफीम उत्पादन जबरजस्ती करवाया जिसने भारत और दुनियां में नशे का कहर बरपा।

नोट: उस समय हिंदू का अर्थ सभी हिंदुस्तानियों से था और उनके लिए नहीं जो हिंदू आस्था को मानते थे।

’’नया जमाना’’ गदर पत्रिका से लिए गए कुछ उद्धरणः

कांग्रेसः सभी बुद्धिमान लोग जानते हैं कांग्रेस एक सरकारी संगठन है। अज्ञानियों के इस संगठन का संस्थापक हय्म नामक एक अंग्रेज था। लगभग प्रति वर्ष एक अंग्रेज उसके अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया जाता है। गोखले जो उसमें बहुत भाग लेते हैं एक अभिजात व्यक्ति हैं और इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल के साथ हैं। श्रीमती मेहता और नेरोजी भी अभिजात व्यक्ति ..... संक्षिप्त में, इसके सभी सदस्य चापलूस और भीरू लोग हैं। वे दुर्भिक्ष और प्लेग से बचाव के उपायों के बारे में विचार नहीं करते। उन्हांेने कुछ वाक्य रट लिए हैं जिन्हें प्रति वर्ष दुहराते रहते हैं ..... वे सरकार से अपने अधिकारों की भीख मांगते हैं। केवल भीख मांगने से ..... ये खाली पीली के नाटक दुर्भिक्ष की रोक, करों की कमी, उद्योग का प्रसार, न्यायपूर्ण प्रशासन का प्रारंभ, किसान का पेट भरने और प्लेग हटाये जाने के लिए कुछ नहीं कर सकते। लेजिस्लेटिव कौंसिल में कुछ युवा लोगों की नियुक्ति देश का कुछ भी हित नहीं ला सकती, फिर चाहे वे कितने ही प्रभावशाली भाषण करने के योग्य क्यों न हों। योग्य भारतीयों के द्वारा सरकारी नौकरी की स्वीकृति देश को बड़ा नुकसान पहंुचाती है। ..... यह देश की विपदाओं से जो उसे उजाड़तीं हैं, मुक्ति का रास्ता नहीं हैै। ..... देश को जागृत करने के लिए बड़ा साहस और विवेक चाहिए। अंग्रेजों की चापलूसी से कुछ भी नहीं होगा ....कांग्रेस अंग्रेजों के हाथों में है और लंदन से संचालित है ..... उसे त्यागो .....।

धार्मिक आंदोलनः भारत में अनेक पंथ और धार्मिक संगठन अस्तित्व में आ रहे हैं, उनमें से प्रत्येक भारत को दासता से मुक्ति दिलाने की डींग हांकता है ..... देश के विभिन्न हिस्सों के धार्मिक झगड़े, कुछ लोगों के विचारों में हिंदू राष्ट्र् की शक्ति एवं प्रयत्न के प्रतीक हैं। ..... वह सोचते हैं कि जब संपूर्ण भारत में एक ही धर्म होगा तब कोई विदेशी राष्ट्र् उसका शासक बनने की नहीं सोचेगा। परंतु यह इतिहास के द्वारा प्रमाणित नहीं है और सामान्य ज्ञान के विरूद्ध है। हर कोई अपना दार्शनिक एवं धार्मिक मत रख सकता है। किसी को किसी के खास मत और विचार पर कार्य करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। ..... सामाजिक संगठनों को धार्मिक आधार पर नहीं होना चाहिए ..... भारत में रामसिंह, नाना साहेब, झांसी की रानी, तातिया, तिलक, अंबा प्रसाद सूफी और अजितसिंह जैसे देशभक्त पैदा हुए हैं परंतु इनका धर्म एक नहीं था। इसलिए यह आवश्यक नहीं है कि संपूर्ण देश में एक ही धर्म ..... यह सोचना मूर्खतापूर्ण है कि केवल एक ही धार्मिक संगठन सभी उद्देश्यों के लिए पर्याप्त होगा। शैक्षणिक और सामाजिक सुधार धर्म पर आधारित नहीं होना चाहिए ..... जनता की समृद्धि और सुख किसी खास पंथ पर आश्रित नहीं होता ..... स्वतंत्राता और समानता के प्रयत्नों का त्याग और अपनी समस्त रुचियों को केवल धर्म पर ही लगाना मनुष्य के स्तर से नीचे गिरना है। कर्तव्य, ज्ञान और सुख स्वतंत्राता और समानता पर आश्रित हैं और इन्हीं से देश का और वास्तव में, विश्व का उद्धार होगा।

पार्टी का वक्तव्य, 1917

राजनीति के अधिकार क्षेत्रा में क्रांतिकारी पार्टी का तात्कालिक उद्देश्य है सशस्त्रा क्रांति के द्वारा भारत में सभी राज्यों को मिलाकर एक संयुुक्त गणराज्य की स्थापना करना। इस गणराज्य के अंतिम संविधान की रचना और घोषणा उस समय की जायेगी जब भारत के प्रतिनिधि अपने निर्णयों पर अमल करने का अधिकार और शक्ति प्राप्त कर लेंगे। परंतु गणराज्य के मौलिक सिद्धांत विश्व मताधिकार होंगे और सभी प्रकार की ऐसी पद्धतियों का परित्याग होगा जो मनुष्य का मनुष्य द्वारा शोषण संभव बनाता है ..... इस गणराज्य में मतदाता अपने प्रतिनिधियों को वापिस बुला सकंे, यदि वे ऐसा महसूस करते हों तो, अन्यथा प्रजातंत्रा एक मखौल बन कर रह जायेगा। जब भी ऐसी आवश्यकता होगी, इस गणतंत्रा में विधायिका कार्यपालिका को नियंत्रित करने और बदल देने के अधिकार से संपन्न होगी।

क्रांतिकारी पार्टी राष्ट्र्ीय नहीं अंतरराष्ट्र्ीय पार्टी है इस मायने में कि उसका अंतिम उद्देश्य दुनिया में सामंजस्य लाने का है, विभिन्न देशों के विभिन्न हितों का आदर एवं उनकी सुरक्षा करते हुए। उसका उद्देश्य प्रतिस्पद्र्धा नहीं वरन् भिन्न राष्ट्र्ों एवं राज्यों के बीच सहयोग होगा और इस संबंध में भारत के महान ऋषियों और बोल्शेविक रूसियों के आज के आधुनिक काल में, पदचिन्हों के अनुकरण करने में होगा। मानवीय अच्छाई भारत के क्रांतिकारियों के लिए सर्वोपरि है।’’

गदर आंदोलन की क्रांतिकारी कविताएं

गदर पार्टी के प्रमुख नेताओं में से एक पंडित सोहनलाल पाठक को फरवरी 10, 1916 को मंडालय जेल में ब्रिटिश शासन के विरूद्ध राजद्रोह उत्प्रेरित करने के लिए फांसी दी गई थी। उनकी शहादत पर गदरवादी अमरसिंह ने लिखा थाः
चढ़ा मंसूर फांसी पर, पुकारा इश्क बाजों को, ये बीड़ा है तबाही का, उठाये जिसका जी चाहे।

’’गदर दी गूंज’’ के पृष्ठों से कवितायें

कुली कुली पुकारदा जग सानॅंू, दुनियां हमें कुली कहकर पुकारती है
साडा झुलदा किते निशान क्यों नहीं ? कहीं हमारा झंडा क्यों नहीं झूलता ?
किकूॅ बचांगे सदा गुलाम रहके हम हमेशा गुलाम रहकर कैसे जीवित बचंेगे,
सानॅंू राजनीति वाला ज्ञान क्यों नहीं ? हमें राजनीति क्यों नहीं आती ?
ढाई तोतरु खा गए खेत साडा, अढाई तोते हमारा खेत खा गये,
हिंदुस्तान दा कोई किसान क्यों नहीं ? हिंदुस्तान की देख भाल करने वाला किसान क्यों नहीं ?
मरन भला गुलामी दी जिंदगी तों गुलामी के जीवन से मरना अच्छा है
नहीं सुखन एहमना भुलावने दा, यह वाक्य भूल जाने का नहीं है,
मुल्क जाग्या चीन, जो घूक सुत्ता, चीन देश जो गहरी नींद में सोया था, जग गया है,
ढोल वज्या हिंद जगावने दा, और अब हिंद को जगाने का ढोल बज रहा है,
सानूॅं लोड़ न पंडितां काजीयां दी, हमें पंडितों और काज़ियांे की जरूरत नहीं है,
न ही शोक है बेडा डुबावने दा, न ही अपनी नांव डुबाने की जरूरत है,
जप, जाप दा वक्त बतीत होया, पूजा पाठ का समय बीत चुका है,
वेला आ गया तेग उठाबने दा, समय आ गया तलवार उठाने का,
पढके गदर अखबार नू खबर लगी, पढ़ कर ’’गदर’’ अखबार को जाना मैंने,
वेला आ गया गदर मचावने दा। समय आ गया गदर मचाने का।

संगठन के विशेष कामों की प्रेरक कविता

खुफिया राज सोसाइटियां करो कायम, खुफिया राज सोसाइटियां करो कायम,
रल मराठे बंगाली दे यार हो जाओ, मिलकर मराठे, बंगाली के मित्रा बन जाओ,
हिंदू सिख ते मोमनो करो जल्दी, हिंदू, सिख और मुस्लिमों, जल्दी करो,
एक दूसरे दे मददगार हो जाओ। एक दूसरे के सहायक हो जाओ।

घर घर गुप्त सभा बनाओ, घर घर गुप्त सभा बनाओ,
लोगों को मंतर सिखलाओ, लोगों को मंतर सिखलाओ,
हर एक दिल में जोत जगाओ, हर एक दिल में जोत जगाओ,
बिना जूत ये भूत न जाई, जूते खाये बगैर यह भूत नहीं भागेगा,
जल्दी गदर मचा दियो भाई। जल्दी गदर मचा दियो भाई।

हिंदुस्तान की स्थिति का वर्णन करती हुई

भुक्खे मरण बच्चे काल विच साडे, हमारे बच्चे अकाल में भूखे मर रहे हैं,
खट्टी खाण साडी इंग्लिस्तान वाले। हमारी कमाई अंग्रेज खा रहे हैं।
कणक बीजके खाण तूं जौं मिलदे, हम गेहूं पैदा करते हैं पर हमें खाने को जौं मिलता है,
पैसा धड्डदे नहीं लगान वाले। टेक्स वसूलने वाले हमारे पास पैसे छोड़ते ही नहीं।
लै लिया टेक्स फिरंगियां बहुत यारो, अंग्रेज इतना टेक्स वसूलते हैं,
भुक्खे मरन गरीब दुकान वाले, कि गरीब दुकानदार भूखे मर रहे हैं
करो पल्टन नू खबरदार जाके, सेना को सूचना भेजो,
सुत्ते पये किओं तेग चलाण वाले। कि वे सो क्यों रहे हैं।
मुसलमान, पठान बलवान डोंगर, मुसलमान, पठान डोंगरे और बहादुर सिख,
सिंघ सूरमे युद्ध मचान वाले, सिंह जैसे शूर वीर युद्ध करने वाले,
हिंदुस्तानियां मोर्चे फतह कीते, हिंदुस्तानियों ने बर्मा, मिश्र,चीन और
बर्मा, मिश्र ते चीन सूडान वाले। सूडान की लड़ाईयां जीती हैं।


ब्रिटिश सहयोगी एवं तथाकथित हिंदुस्तानी नेताओं के बारे में

जट्टां सिधियां नू कोई दोष नहीं, ऐ सिक्खो ! सीधे सादे किसानों का कोई दोष नहीं
साडे लीडरों दा मंदा हाल सिंघो, हमारे नेताओं का ही बुरा हाल है,
राय बहादरां मुल्क वीरान कीता, राय बहादुरों ने देश को वीरान कर दिया है,
प्यार रखदे बांदरां नाल सिघों, वे अंग्रेजों के साथ प्यार करते हैं,
सानॅंू पास अंग्रेज दे बेचा है, उन्होंने हमें अंग्रेजों के हाथों में बेच दिया है,
आप मुल्क दे बने दलाल सिंघों। और स्वयं देश के दलाल बन गए हैं।

भारतीय राष्ट्र्ीय क्रांग्रेस के रूढिवादी एवं उदारवादी नेताओं द्वारा फैलाये भ्रम को देखने का आह्वानः

गैरत अणख वाला जे खून होंदा, इनके खून में यदि स्वाभिमान होता,
देहली तख्त जालिम साथों खसदे नां, जो दिल्ली का तख्त हम खो न देते,
बनर, विपिन, गांधी, मदन मोहन वंरगे, बैनर्जी, विपिनचंद्र पाल, गांधी और मदन,
ये फिरंगिया दो बूट कस्सदेे नाल। मोहन मालवीय जैसे नेता अंग्रेजों के जूते न चाटते।

डेपुटेशन ते रेज्युलेशन ते, डेपुटेशन और रेजूलेशन पर
मुफत धन खराब कराया किओं ? व्यर्थ ही रूपया क्यों खर्च किया ?
नरम दिल क्रांग्रेसी लीडरां नूं, नर्म दिल कांग्रेसी नेताओं को,
तुसी सुतियांे लीडर बनाया किओं। ऐ गाफिलो आपने नेता क्यों बनाया।

स्वतंत्राता मांगने से नहीं मिलती

कदे मांगियां मिलन अजादियां ना, आजादी कभी मांगने से नहीं मिलती,
हुंदे तरलियां नाल ना राज लोको। मिन्नतें करने से राज नहीं होता।

करो न मिन्नत ऐवें बनो न कायर, डरपोक न बनो और मिन्नतें न करो,
फड़ो तलवार एहनां नहीं रहना, तलवार पकड़ो, ये भाग जावेंगे,
अग्गे वीरो अरजियां ने की बना लिया, पहले ही प्रार्थनाओं से क्या लाभ मिला,
जालिम फिरंगियां ने देश खा लिया। जालिम अंग्रेजों ने देश खा लिया।

हिंदुस्तानी सैनिकों को विद्रोह के लिए कविता

तुसी लड़ो जां के खातिर गोरियां दे तुम लोग अंग्रेजों के लिए लड़ रहे हो,
सिंघो भोलियो करदे ख्याल क्यों नहीं ? ऐ भोले सिक्खो, विचार क्यों नहीं करते ?
देश दुनिया ते नित करो धावे, दुनियां भर के देशों पर हमले कर रहे हो,
मुल्क आपण लेंदे सम्हाल क्यों नही ? अपने देश की सम्हाल क्यों नहीं करते ?
तिब्बत, चीन अफ्रीका नू फते करदे, तिब्बत, चीन, अफ्रीका को जीत रहे हो,
दित्ता दुश्मनां हत्थ दिखाल किओं नहीं ? अपने दुश्मन को हाथ क्यों नहीं दिखाते ?
उठो आजादी दा लवो झोंका, उठो आजादी की खुशनुमा हवा में सांस लो,
रलके खेडद्े किओं गुलाल नहीं। और सभी मिलकर होली खेलो।

फौजां वालियो तुसां दी मत मारी, ऐ फौजियों तुम्हारी अक्ल मर गई है,
लोकां वास्ते करो लड़ाईयां, किओं ? गैरों के लिए लड़ाई लड़ रहे हो ?
बैरी तुसां दा घिरिया विच यूरोप, तुम्हारा दुश्मन यूरोप में घिर गया है,
वेला सांब लओ ढेरियां ढाईयां किओं। समय का लाभ उठाओ, उदासीनता में समय न गंवाओ।

धार्मिक नेताओं के तालमेल के खिलाफ कविता

काजी, पंडितां अते ज्ञानियां ने, काजियों, पंडितों और ज्ञानियों ने
युद्ध करन दा वचन सुनावना ना, युद्ध करने की बात नहीं कहनी है,
भौंकन रात दिन भुक्खे टुकड़ियां दे, वे कुत्ते दिन रात भौंकते रहते हैं,
खाली रहनगे ढिड्ड भरावना नां, इनके पेट भरते ही नहीं खाली ही रहते हैं,
हड्डी घुन पैजू थोडे खालसा जी, ऐ खालसा जी ! तुम्हारी हड्डियों को घुन लग जायेगा,
मरदां धन पूजा वाला खावना ना, मर जाना पर पूजा का धन न खाना,
वजा मोमनां दी कम्म लुच्चियां दे, इनकी शक्ल अच्छे लोगों की है पर काम बुरे लोगों जैसे हैं
डील डौल नंू वेख भूल्ल जावना ना, डीन डौल देखकर भूल न जाना
सानंू लार्ड ना अमय अफयां दी, उनके काम शैतान के काम हैं
इलम रगड़ फाड़दे उथे लवांना ना। उनकी पकड़ से मूर्ख मत बन जाना।

लाहौर गोलीबारी में मृत्यु पर कविता

शहीद की जो मौत है वो कौम की हयात है, शहीद का जो है लहू वो कौम की जकात है।
काटें जो चंद डालियां तो चमन हो हरा भरा, काटें जो चंद गर्दनें तो कौम की हयात है।

पार्टी के युवा शहीदों में से एक का वक्तव्य

’’जब तक कुछ लोग वे चाहे देशी हों या विदेशी हों या फिर दोनों आपसी सहयोग में हों, श्रम और हमारे लोगों के साधनों का शोषण जारी रखते हैं हमारी लड़ाई चलती रहेगी । हमें इस रास्ते से कोई नहीं हटा सकता।’’
- करतारसिंह सरावा।